बहुजनों को संविधान में प्रदत्त अधिकार दिलाने के लिए होगा बड़ा आंदोलन : चिंतामणि

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भारतीय संविधान दिवस से सामाजिक संस्था बहुजन भारत शुरू करेगी अभियान

कमल जयंत

लखनऊ। सामाजिक संस्था बहुजन भारत के महासचिव चिंतामणि का कहना है कि देश के दबे-कुचले समाज के लोगों का राष्ट्रीय ग्रन्थ भारतीय संविधान है। दलितों, पिछड़ा वर्ग और अल्पसंख्यक समुदाय के साथ ही महिलाओं को सारे अधिकार भारतीय संविधान से मिले हैं। २६ नवंबर १९४९ को भारत की संविधान सभा ने संविधान को अपनाया था। इसलिए बहुजन समाज के लोगों के लिए संविधान दिवस का सबसे ज्यादा महत्व है। सामाजिक संस्था बहुजन भारत संविधान दिवस के मौके पर गोरखपुर में एक सेमिनार का आयोजन कर रही है। इस कार्यक्रम के जरिए संगठन बहुजनों में एक बार फिर जागरूकता पैदा करने के लिए हर जिले में छोटे-छोटे कार्यक्रमों का आयोजन करेगा और उन्हें भारतीय संविधान में उनके लिए प्रदत्त अधिकारों के बारे में जानकारी देगा।

चिंतामणि ने बताया कि भारतीय संविधान को लागू कराके ही देश में वंचितों को उनके अधिकार दिलाये जा सकते हैं। बहुजन नायक कांशीराम जी ने भारतीय संविधान में प्रदत्त अधिकारों को दिलाने के लिए संघर्ष किया और बहुजनों को एकजुट करके देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में चार बार बसपा की सरकार बनायी और सरकार के जरिए कांशीराम जी ने भारतीय संविधान में प्रदत्त दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को उनके अधिकार दिलाये।

संविधान को लागू करने वाले लोग अच्छे होंगे तो वंचितों को मिलने लगेंगे उनके अधिकार

बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर के प्रयासों से भारतीय संविधान मे इन बहुसंख्यक जातियों को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व राजनैतिक आदि अनेक अधिकार दिये गये ताकि वे मनुवादी, गैरबराबरी व शोषण की व्यवस्था से मुक्त होकर देश मे अन्य सम्पन्न वर्गों के समान सम्मानजनक जीवन जी सके। किन्तु संविधान लागू होने के इतने लम्बे वर्षों के बाद भी मनुवादी ताकतें अपना वर्चस्व निरंतर कायम रखने के लिए बहुजन समाज को आपस मे बाटकर उन्हें भ्रमित करते हुए सत्ता पर काबिज हैं एवं इन 85 प्रतिशत एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. एवं अल्प संख्यकों को उन्हें संविधान मे दिये गये अधिकार व हक नहीं दे रहीं हैं।

उनका कहना है कि बाबा साहब ने संविधान सभा में अपनेअंतिम उद्बोधन में कहा था कि मैं यहां पर संविधान की अच्छाई गिनाने नहीं आया हूं क्योंकि मुझे पता है कि संविधान चाहे जितना भी अच्छा क्यों न हो, वह अंतत: बुरा साबित होगा, अगर उसे लागू करने वाले लोग बुरे हों। और संविधान कितना भी बुरा क्यों न हो वह अंतत: अच्छा साबित होगा अगर उसे लागू करने वाले लोग अच्छे होंगे। चिंतामणि ने कहा कि देश के वंचितों को उनके संवैधानिक अधिकार मिलने लगे तो सारी समस्या ही खत्म हो जाएगी। लेकिन संविधान में बहुजनों के लिए प्रदत्त अधिकार इन वर्गों को तभी मिलेंगे जब इनकी विचारधारा के सियासी दल के हाथों में सत्ता होगी। कांशीराम जी ने राज्य में अपनी सरकार के दौरान इसी संविधान से दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों को उनके अधिकार दिलाये।

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