अन्य एक्ट के दुरुपयोग पर भी होती है चर्चा, उन्हें हटाने पर चर्चा क्यों नहीं होती
कमल जयंत
लखनऊ। उत्तर प्रदेश विधानसभा में अनुसूचित जाति, जनजाति एवं विमुक्ति जातियों की संयुक्त समिति के सभापति दीनानाथ भास्कर का कहना है कि इन दिनों दलित एक्ट के दुरुपयोग पर चर्चा चल रही है। यह कहना पूरी तरह से गलत है कि इस एक्ट का पूरी तरह से दुरुपयोग किया जा रहा है। हां ये माना जा सकता है कि कुछेक लोगों ने अपने निजी स्वार्थ में इस एक्ट का दुरुपयोग करके सरकारी धन हासिल कर लिया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस एक्ट का दुरुपयोग हो रहा है।

देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए बने हैं बहुत से अधिनियम
उन्होंने सवाल किया कि क्या इन अधिनियमों के दुरुपयोग की बात सामने आने पर इन अधिनियमों को समाप्त कर दिया जाना चाहिए। पिछली सरकारों में देश में हो रहे दलित उत्पीडऩ के मामलों में बढ़ोतरी को देखते हुए केन्द्र सरकार ने अनुसूचित जाति, जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम 1889 लागू किया। राज्य की भाजपा सरकार दलित उत्पीडऩ करने वालों के खिलाफ कार्रवाई कर रही है। उनका कहना है कि सामाजिक जागरूकता लाये बगैर देश में दलित उत्पीडऩ की घटनाओं पर विराम नहीं लगेगा।
सौ फीसदी जरूरी है दलित एक्ट का लागू रहना
सामाजिक संगठनों की जिम्मेदारी बनती है कि वह लोगों को सामाजिक एकता के बारे में समझाएं ताकि लोग समाज में मिलजुल कर रह सकें। वास्तविकता तो यह है कि सामाजिक और आर्थिक रूप से कमजोर दलित समाज अपने खिलाफ हो रहे उत्पीडऩ का तो सही से विरोध नहीं कर पाता। तो वह इस एक्ट का दुरुपयोग कैसे कर पाएगा। भास्कर ने कहा कि किसी भी दलित के उत्पीडऩ का मामला संज्ञान में आने पर हमारी सरकार दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करती है। हमारी सरकार में अपराधियों के हौसले पस्त हैं। दलित उत्पीडऩ करने वालों के खिलाफ सरकार ने सख्त कार्रवाई की है।
हां ये सही है कि कुछेक लोग इस एक्ट का दुरुपयोग करके सरकारी धनराशि ले रहे हैं। इसका मतलब ये नहीं है कि एक्ट गलत है और एक्ट को निष्प्रभावी कर दिया जाना चाहिए। दलित एक्ट ही नहीं ऐसे तो बहुत सारे एक्ट हैं, जिनका काफी दुरुपयोग होता है और समाज में लोगों को इसकी जानकारी भी है, लेकिन वे उन अधिनियमों को हटाने या निष्प्रभावी करने की बात कभी नहीं करते।