जाति और मजहब देखकर आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई तय करती है सरकार : एसएफए नकवी

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छोटे-छोटे गुनाह पर भी मुस्लिमों के घरों पर चलता है बुलडोजर
कमल जयंत
इलाहाबाद हाई कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता सैयद फरमान अहमद नकवी का कहना है कि देश के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई ने बुलडोजर एक्शन पर जो दिशा-निर्देश दिये हैं, शायद वह बात लोकतंत्र पर भरोसा न करने वालों को अच्छी नहीं लगी, जिसकी वजह से ऐसे तत्वों ने सीजेआई को अपमानित करने के लिए यह कृत्य किया। इसके पीछे मनुवादी विचारधारा के लोगों की एक सोची-समझी रणनीति है, ताकि आगे कोई दूसरा प्रधान न्यायाधीश उनके दलित और मुस्लिम विरोधी मंसूबों को रोकने की हिमाकत न कर सके। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता ने सीजेआई की टिप्पणी को सनातन विरोधी बताते हुए उन पर यह हमला किया। सबसे आश्चर्यजनक स्थिति तो यह हैै कि इस मामले में केन्द्र सरकार ने चुप्पी साध रखी है, प्रधानमंत्री के केवल निंदा कर देने मात्र से ऐसे तत्वों के मंसूबे पस्त नहीं होंगे। इसके लिए सरकार को देश की सर्वोच्च न्यायालय और प्रधान न्यायाधीश पर हमला करने वाले और इस हमले की साजिश रचने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करने के लिए एक उच्च स्तरीय जांच समिति गठित करनी चाहिए। उनका कहना है कि देश में मौजूदा समय में दलित, पिछड़ा वर्ग और मुस्लिम विरोधी विचारधारा काम कर रही है। इस विचारधारा के लोगों के सत्ता में आने के बाद इनका काम अब यूपी ही नहीं बल्कि पूरे देश में पुलिस व केन्द्रीय जांच एजेंसियां कर रहीं हैं। देश के प्रधान न्यायाधीश पर हमला करके इस विचारधारा के लोगों ने साफ कर दिया है कि अब ये देश मनुस्मृति में दी गयी व्यवस्था से चलेगा। सैयद फरमान अहमद नकवी का कहना है कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सरकार ही दलितों और अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है। रायबरेली में एक दलित व्यक्ति की दिनदहाड़े हत्या कर दी जाती है, इससे पहले हाथरस में दलित युवती के साथ सामूहिक दुराचार और उसकी निर्ममता से की गयी हत्या के मामले में सरकार के रवैये से साफ है कि वह केवल सनातन धर्म के हितों की रक्षा के लिए ही काम कर रही है। नकवी से हुई बातचीत में उन्होंने सभी सवालों के बेबाकी के साथ जवाब दिये।

सवाल- आपको क्या लगता है सरकार देश के संविधान और कानून के मुताबिक काम नहीं कर रही है।
जवाब- बिल्कुल नहीं। अगर बलात्कार, सामूहिक बलात्कार के मामले में कोई दलित या मुस्लिम शामिल हे तो उसके लिए अलग सजा है। सरकार बुलडोजर से उसका घर गिरवा दे रही है। वहीं यह कृत्य सवर्ण जाति के लोगों ने किया है तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं होती, हां बहुत दबाव पडऩे पर उसके खिलाफ एफआईआर जरूर कर ली जाती है। हाल ही में मुरादाबाद में एक निजी स्कूल के दस कमरों को बुलडोजर से ध्वस्त कर दिया गया, सिर्फ इसलिए कि वह किसी अल्पसंख्यक समाज का है। यहां अगर कोई मुस्लिम छोटा गुनाह भी करे तो उसके घरों को बुलडोजर से ढहा दिया जाता है।

सवाल- सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश बीआर गवई पर कोर्ट परिसर में हुए हमले की क्या वजह हो सकती है।
जवाब- केवल और केवल एक ही वजह है कि हमला करने वाला कोई अकेला नहीं है, उसके पीछे मनुवादी मानसिकता के तहत देश में गैरबराबरी के आधार पर सामाजिक व्यवस्था लागू करने वाली विचारधारा भी शामिल है। जो बात जस्टिस गवई ने कही, अगर वही बात जस्टिस चन्द्रचूड़ कहते तो शायद ये सनातनी इस तरह से हिंसात्मक या पीठ और प्रधान न्यायाधीश को अपमानित करने वाला कृत्य न करते। इस हमले के पीछे जातिवादी मानसिकता छिपी हुई है। हालांकि प्रधानमंत्री जी ने इस कृत्य की निंदा की है, लेकिन केवल निंदा करने से काम नहीं चलेगा, इसके लिए केन्द्र सरकार को उच्च स्तरीय जांच करानी चाहिए, ताकि हमले के पीछे कौन लोग हैं और इसके पीछे क्या साजिश है इसका भी खुलासा हो सके।

सवाल- सीजेआई के खिलाफ हिंसक प्रवृत्ति को आप किस नजरिए से देखतेेे हैं।
जवाब- दरअसल यह एक सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है। देश में मनुस्मृति की पक्षधर विचारधारा ने पहले अल्पसंख्यकों और खासतौर पर मुस्लिमों को निशाना बनाया और उसमें वह सफल होते दिखे तो उन्होंने दलितों और पिछड़ा वर्ग के लोगों को भी निशाना बनाना शुरू कर दिया। क्या किसी धर्म में यह लिखा है कि दूसरे धर्म के लोगों से नफरत करो, जो आपकी विचारधारा को न माने उसे अपमानित करो। सभी धर्म में हिंसा को गलत कहा गया है, लेकिन जो लोग ये कृत्य कर रहे हैं वे धार्मिक नहीं बल्कि धर्म के नाम पर नफरत फैलाने वाले लोग हैं। ऐसे तत्वों से संविधान के मानने वाले धर्मनिरपेक्ष लोगों को मिलकर लडऩा होगा, तभी हम उनकी बुराई और अत्याचार पर विराम लगा पाएंगे।
सवाल- हाईकोर्ट ने निर्देश दिये हैं कि निचली अदालतें अपने फैसले में गाली-गलौज का इस्तेमाल न करें। इसे आप किस तरह से देखते हैं।
जवाब- हाईकोर्ट का यह फैसला बिल्कुल सही है। दरअसल इन दिनों जातिवाद की जड़ें बहुत ज्यादा मजबूत हो गई हैं। पहले भी जातिवाद था, लेकिन पिछली सरकारों में यह धीरे-धीरे कम हो रहा था, पहले होटल में चाय पीने जा रहा व्यक्ति चाय लाने वाले कल्लू की जाति या धर्म नहीं देखता था, अब सरकार ही कह रही है कि होटल मालिक और काम करने वाले किस जाति धर्म के हैं, इसका व्यौरा सार्वजनिक करें, बैनर लगाएं तो ऐसे में सांप्रदायिकता और जातिवाद का जहर बढ़ेगा। इन दिनों जिला अदालतें अपने फैसले में अगर किसी ने दलित को गाली दी तो उसका भी जिक्र कर रहे थे, उसी पर हाईकोर्ट ने रोक लगाई है।

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