संविधान विरोधियों को लाभ पहुंचाने वाले दल आस्तीन के सांप : कुंवर फतेह बहादुर

Share

बहुजन आंदोलन को करीब से देख रहे सामाजिक संस्था बहुजन भारत के अध्यक्ष एवं पूर्व आईएएस कुंवर $फतेह बहादुर का कहना है कि बहुजन एकता के कारण ही उत्तर प्रदेश में संविधान विरोधी साम्प्रदायिक ताकतों को शिकस्त मिली है। संविधान समर्थकों व बहुजन आन्दोलन के सामाजिक संगठनों एवं राजनीतिक दलों को भी इस एकता को बनाये रखने के लिए सतत प्रयास भी करते रहना होगा। इसके साथ ही बहुजन समाज को यह भी ध्यान रखना होगा कि जो राजनीतिक दल बहुजन मिशन की बात करके मनुवादियों एवं संविधान विरोधियों को लाभ पहुंचा रहे हैं, उनसे सावधान रहें क्योंकि ऐसे दल आस्तीन में सांप की तरह दलित समाज का नु$कसान कर सकते हैं एवं नुकसान कर भी रहे हैं।

उनका कहना है कि बहुजन समाज की विभिन्न जातियों के बीच सामाजिक गठबंधन स्थापित करने के साथ ही इन जातियों में राजनीतिक चेतना पैदा करने का श्रेय बहुजन नायक कांशीराम जी को ही जाता है, उनकी चमत्कारिक नेतृत्व क्षमता का ही नतीजा रहा कि कुछ समय के संघर्ष के दौरान ही देश का सबसे बड़ा दलित, शोषित और वंचित वर्ग एक बैनर के नीचे इकट्ठा हो गया। देश में और राज्य में जो मौजूदा राजनीतिक व सामाजिक हालात हैं, उससे बहुजन समाज के लोगों को बाहर निकालने के लिए संविधान समर्थक सियासी दलों को कांशीराम जी की राजनीतिक रणनीति का सहारा लेकर इन वर्गों को एकजुट करने के लिए बड़ा अभियान चलाना होगा।

बसपा के कमजोर होने से हाशिये पर पहुंचा दलित

बसपा के तेरह साल से सत्ता से बाहर रहने और पिछले छह साल से राज्य की राजनीति की मुख्यधारा से बाहर रहने का नुकसान बहुजन समाज के लोगों को उठाना पड़ रहा है। इस पार्टी के कमजोर होने और दलितों का कोई मजबूत संगठन प्रभावी ना होने के कारण यूपी में दलित और पिछड़ी जातियों के बीच में काम कर रहे सामाजिक न्याय आंदोलन की पृष्ठभूमि वाले जातीय समूहों में बिखराव इतना बढ़ा और हर दलित जाति के नेताओं ने अपने संगठन बना लिए। दलि त व पिछड़े वर्ग के आधार पर खड़ी मानी जाने वाली बसपा व सपा सरकारों ने भी बीते सालों में अपने जातीय समर्थक समूहों को निराश ही किया है। पिछले एक दशक से यूपी में सामाजिक न्याय के मुद्दों पर बनी परिस्थितियों के निर्माण से लगता है कि प्रदेश में बहुजन राजनीति व उसके साथ जुड़े एक जीवंत आंदोलन में चेतना मर-सी गयी है।

अब देखना यह होगा कि रैली की सफलता से उत्साहित बसपा एक बार फिर बहुजन समाज की सभी जातियों को पार्टी से जोडक़र फिर से राजनीतिक तौर पर यूपी में नंबर वन बन पाएगी या बहुजन समाज के वोटों के बिखराव का फायदा इंडिया गठबंधन को मिलेगा। वैसे २००७ के बाद बसपा यूपी में अकेले दम पर ही चुनाव लड़ी है और अकेले लडऩे का पार्टी को भारी नुकसान उठाना पड़ा है। २०१९ में सपा से गठबंधन करके लोकसभा का चुनाव लड़ा तो यूपी में बसपा को दस लोकसभा की सीटें जीतने का मौका मिला। अकेले चुनाव लडऩे का बसपा को सीट और वोट प्रतिशत दोनों का ही भारी नुकसान हुआ। कभी यूपी में तीस प्रतिशत तक वोट पाने वाली बसपा को मौजूदा लोकसभा चुनाव में यूपी में महज नौ फीसदी वोट ही मिले। सीट के लिहाज से भी पार्टी लोकसभा में शून्य पर है। यूपी विधानसभा में भी पार्टी का एक ही विधायक है। पार्टी के कमजोर होने का नुकसान केवल पार्टी नेताओं या कार्यकर्ताओं को ही नहीं हो रहा है। बल्कि इसका बड़ा नुकसान बहुजन समाज इसमें भी खासतौर पर दलित समाज को हो रहा है। क्योंकि दलितों की सशक्त आवाज के कमजोर पडऩे से इन वर्गों का उत्पीडऩ भी बढ़ गया है।
बसपा को फिर कांशीराम जी के एजेंडे पर वापस आना होगा

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *