भाजपा की तारीफ करने से अच्छा तो यह है मायावती जी को अपनी पार्टी का विलय भाजपा में कर लें
कमल जयंत
कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत का कहना है कि यूपी में भाजपा सरकार ने लोकतांत्रिक मूल्यों की हत्या कर दी है। यहां पूरी तरह से सामंतशाही की सरकार चल रही है। दलितों के साथ ही महिलाओं का उत्पीडऩ भी चरम पर है। इन वर्गों की लड़ाई जिन्हें लडऩी चाहिए वह भाजपा के साथ हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी जी दलितों, पिछड़ों और महिलाओं को उनके अधिकार दिलाने की लड़ाई लडऩे के साथ ही संविधान और आरक्षण बचाने की लड़ाई भी लड़ रहे हैं। देश के शोषित-वंचित और दलित समाज की लड़ाई लडऩे के लिए बहुजन नायक कांशीराम जी ने जिन मूल्यों के लिए बहुजन समाज पार्टी का गठन किया और इन वर्गों की लड़ाई लडक़र इन्हें स्वाभिमानी और आत्मनिर्भर बनाया, दुर्भाग्यवश मायावती जी के नेतृत्व में यह आंदोलन रुक गया है।

देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश जहां बसपा की एक बार नहीं बल्कि पांच बार सरकार रही, पार्टी नेतृत्व इसी यूपी में दलितों पर हो रहे अत्याचार को लेकर मौन है। हाथरस में दलित युवती के साथ सामूहिक दुराचार और उसकी हत्या का मामला हो या रायबरेली में हरिओम बाल्मीकि की पीट-पीटकर हत्या कर देने का प्रकरण या प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दलित बुजुर्ग से मंदिर के भीतर पेशाब चटवाने का मामला हो। इन सभी मुद्दों पर बहन जी की खामोशी दलित समाज को आश्चर्यचकित कर रही है। देश के प्रधान न्यायाधीश पर जूता फेंकने की घटना भी मायावती जी के जमीर को नहीं जगा सकी।
सीजेआई पर जूता इसलिए फेंका गया क्योंकि वह दलित समाज से हैं। सामंतवादी व्यवस्था के पोषकों ने सीजेआई पर जूता फेंककर यह साफ कर दिया कि जस्टिस गवई देश के प्रधान न्यायाधीश हो सकते हैं, लेकिन उनके लिए वह दलित हैं जो मनुवादी व्यवस्था में सबसे निचले पायदान पर आते हैं। सुरेन्द्र राजपूत का कहना है कि मायावती जी ने लखनऊ में रैली बुलायी तो बहुजन समाज के लोगों खासतौर पर दलित समाज के लोगों को यह लगा कि रैली के बाद वे सडक़ पर उतरकर दलितों व महिलाओं पर हो रहे अत्याचार के खिलाफ लड़ेंगी। लेकिन रैली की सफलता से उत्साहित बहन जी ने दलितों की बात नहीं की, बल्कि रैली से उस भाजपा सरकार की तारीफ की, जिसके खिलाफ दलित समाज की लड़ाई है। क्योंकि यह वही भाजपा है जो मनुस्मृति के आधार पर देश में गैरबराबरी वाली सामाजिक व्यवस्था लागू करना चाहती है। सुरेन्द्र राजपूत ने कहा कि उन्हें अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मायावती जी ने ये रैली दलितों में उत्साह भरने या उनकी लड़ाई लडऩे के लिए नहीं बल्कि चुनाव में टिकटों का दाम बढ़ाने के लिए बुलायी थी। कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेन्द्र राजपूत से राज्य के सियासी हालात पर विस्तार से बातचीत हुई। उन्होंने सभी सवालों का बहुत ही बेबाकी के साथ जवाब दिया।
सवाल- यूपी में इनदिनों राजनीतिक हालात कैसे हैं। आपको लगता है कि राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द बढ़ा है।
जवाब- नहीं राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द तो बिल्कुल नहीं बढ़ा, हां सांप्रदायिक तनाव जरूर बढ़ा है। राज्य का युवा इनदिनों सांप्रदायिकता के तनाव और बेरोजगारी की पराकाष्ठïा से जूझ रहा है। यहां किसानों की दुर्दशा, महिलाओं का उत्पीडऩ और दलितों के साथ अत्याचार की घटनाएं आम बात हो गयीं हैं। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में दलित बुजुर्ग से मंदिर में पेशाब चटवाया गया, ये भाजपा की सरकार में ही संभव है। अगर यही कृत्य किसी सवर्ण के साथ किया गया होता तो योगी सरकार में उसका हाफ एनकांउटर हो जाता। राज्य में कानून और सरकार का इकबाल खत्म हो चुका है। सामंतों का राज है। दलित उत्पीडऩ की घटनाओं की रिपोर्ट तक नहीं लिखी जा रही है। बेरोजगारी चरम पर है। जिसकी वजह से युवा निराश है। इस सरकार में यदि पुलिस भर्ती को छोड़ दिया जाए तो एक भी नियुक्ति नहीं हुई। शिक्षक भर्ती तो शिक्षा मित्रों के समायोजन के लिए की गयी, उसमें भी अभ्यर्थी पांच साल से धरने पर बैठे हैं। ये सरकार दो-चार पदों पर भर्ती करती है और उनके नियुक्ति पत्र बांटने का काम करती है। जो काम पहले डाकिया करता था, अब डाकिये का काम मुख्यमंत्री जी कर रहे हैं।
सवाल- यूपी में विधानसभा चुनाव इंडिया गठबंधन यानि सपा और कांग्रेस मिलकर लड़ेगी। सपा लगातार पीडीए का मुद्दा उठा रही है, इससे क्या सवर्ण जातियां आपसे अलग नहीं होंगी।
जवाब- राज्य या केन्द्र की भाजपा सरकार से जितना दलित और पिछड़ा वर्ग समाज परेशान है, उतना ही सवर्ण समाज भी परेशान है। लेकिन पीडीए के मुद्दे पर इस समय केवल सपा और कांग्रेस ही काम कर रही है। राहुल गांधी जी आरक्षण और संविधान बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं। इसी का नतीजा है कि बसपा ने जबसे बहुजन समाज को छोड़ा और जमीनी राजनीति से खुद को अलग किया, उसके बाद से बहुजन समाज के अधिकांश नेता व कार्यकर्ता सपा व कांग्रेस में शामिल हुए हैं। इसके अलावा पूरा बहुजन समाज जिसे अब पीडीए यानि पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक कहा जा रहा है, ये वर्ग भी इंडिया गठबंधन के साथ जुड़ रहा है। भाजपा ने पिछड़ा वर्ग के नाम पर इनका वोट तो लिया, लेकिन जब सरकार बनी तो मुख्यमंत्री कौन है। पिछड़ा वर्ग के नेता केशव प्रसाद मौर्य को तो पार्टी और सरकार के लोगों ने स्टूल पर बिठा दिया। भाजपा की सरकार में इससे ज्यादा पिछड़ा वर्ग का अपमान और क्या हो सकता है।
सवाल- भाजपा सरकार तो राज्य में रोजगार और नौकरियां देने की बात कर रही है।
जवाब- यह सरकार केवल बात ही करती है। इस सरकार में दलितों व पिछड़ा वर्ग का आरक्षण खत्म हो गया है। सारी नौकरियों को आउटसोर्सिंग या संविदा के जरिए भरा जा रहा है। जब सरकारी नौकरियां ही खत्म हो जाएंगी तो आरक्षण अपने आप खत्म हो जाएगा। भाजपा ने दलितों के लिए एक काम जरूर किया है, २०१३ में मुजफ्फरनगर में हुए दंगे में इस वर्ग को कमुनल जरूर बना दिया। अब भाजपा और आरएसएस के लोग भारतीय संविधान को खत्म करने की साजिश रच रहे हैं। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत समेत भाजपा के कई नेताओं ने संविधान खत्म करके मनु का कानून लागू करने की बात कही। राहुल गांधी जी ने संविधान बचाने की लड़ाई लड़ी और संविधान समर्थकों ने इस लड़ाई में उनका मजबूती के साथ सहयोग किया, जिसका नतीजा यह रहा कि लोकसभा चुनाव में भाजपा का विजय रथ यूपी में ही रुक गया और सरकार बनाने के लिए भाजपा को नीतीश और चंद्रबाबू नायडू नामक दो बैशाखियों का सहारा लेना पड़ा।
सवाल- यूपी में होने वाले चुनाव में हिन्दुत्व के नाम पर क्या भाजपा अपने पक्ष में वोटों का ध्रुवीकरण करने में सफल होगी।
जवाब- इसी बार भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति सफल नहीं होगी। देश में एक फीसदी लोगों का नब्बे फीसदी संसाधनों, संपत्ति, जमीन और बड़ी-बड़ी नौकरियों पर कब्जा है। यह बात इस देश के पीडीए यानि बहुजन समाज के लोगों को पता चल गयी है और वे राहुल गांधी जी के नेतृत्व में एकजुट होकर इस लड़ाई को लड़ रहे हैं। वहीं भाजपा मंदिर के नीचे मस्जिद खोज रही है, मजारों पर भगवा फहरा रही है। अब भाजपा का धार्मिक एजेंडा, मंदिर-मस्जिद और हिंदू-मुस्लिम नहीं चलने वाला है। भाजपा के खिलाफ पीडीए समाज सपा-कांग्रेस के पक्ष में एकजुट हो रहा है। इसका परिणाम राज्य में होने वाले विधानसभा चुनाव में देखने को मिलेगा।