बसपा ने खुद को बहुजन आन्दोलन से विमुख किया तो इन्होंने भी बसपा से नाता तोड़ लिया
कमल जयंत
सामाजिक संस्था बहुजन भारत के महासचिव चिंतामणि अपने सेवाकाल से ही वाचितों और शोषितों के अधिकारों के लिए लड़ते रहे और अगर इन वर्गों के साथ कहीं कोई अन्याय होता तो वे उन्हें न्याय दिलाने के लिए भी आगे आते। प्रसाशनिक सेवा में राज्य के विभिन्न पदों पर तैनात रहे चिंतामणि ने हर जगह वंचितों के पक्ष को प्रमुखता से रखा और उन्हें न्याय दिलाया, जहाँ वह खुद अधिकार और न्याय देने की स्थिति में थे वहां बिना समय गँवाए ही इन वर्गों के हितों की रक्षा की। सेवानिवृत होने के बाद भी उन्होंने सामाजिक आंदोलनों से खुद को अलग नहीं किया। सामाजिक आन्दोलन को मजबूत करने की लड़ाई लड़ रही बसपा के साथ जुड़कर भी बहुत काम किया और जब बसपा ने खुद को बहुजन आन्दोलन से विमुख किया तो इन्होंने भी बसपा से नाता तोड़ लिया। वैसे चिंतामणि बसपा में तमाम महत्वपूर्ण पदों पर रहे, लेकिन पार्टी में बहुजन समाज की बात होना बंद हो गयी तो इनका भी बसपा से मोहभंग हो गया। बहुजन सरोकार और कांशीराम के कमजोर पड़ते मूवमेंट के कारणों पर चिंतामणि से विस्तार से बातचीत हुई।

बातचीत के दौरान उन्होंने बताया कि इस देश मे सदियों से प्रचलित सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक गैर बराबरी एवं शोषण पर आधारित मनुवादी विचारधारा द्वारा पुष्पित एवं पल्लवित 15 प्रतिशत सुविधा सम्पन्न व अधिकार प्राप्त आबादी द्वारा 6743 जातियों/उपजातियों मे बांटी गयी 85 प्रतिशत अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं पिछड़ी जातियों के साथ अमानवीय रूप से शोषण का शिकार बनाकर उन्हें शिक्षा, सत्ता, सम्पत्ति एवं सम्मान के अधिकार से वंचित रखा गया एवं इन्हें शूद्रो के श्रेणी मे रखते हुए दयनीय जीवन जीने के लिए मजबूर किया गया।
उनका कहना है कि 85 प्रतिशत आबादी वाली इन वंचित, शोषित बहुसंख्यक जातियों को संगठित करने का कार्य यद्यपि समय-समय पर किया जाता रहा है परन्तु सर्वप्रथम भारत का संविधान बनाते समय बाबा साहब डॉ0 भीमराव अम्बेडकर के प्रयासों से भारतीय संविधान मे इन बहुसंख्यक जातियों को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक व राजनैतिक आदि अनेक अधिकार दिये गये ताकि वे मनुवादी, गैरबराबरी व शोषण की व्यवस्था से मुक्त होकर देश मे अन्य सम्पन्न वर्गों के समान सम्मानजनक जीवन जी सके। किन्तु संविधान लागू होने के इतने लम्बे वर्षों के बाद भी मनुवादी ताकते अपना वर्चस्व निरंतर कायम रखने के लिए इन बहुजन समाज को आपस मे बाटकर उन्हें भ्रमित करते हुए सत्ता पर काबिज है एवं इन 85 प्रतिशत एस.सी., एस.टी., ओ.बी.सी. एवं अल्प संख्यकों को उन्हें संविधान मे दिये गये अधिकार व हक नही दे रहे है।
चिंतामणि ने एक सवाल के जवाब में कहा कि वंचितों को उनके संवैधानिक अधिकारों को दिलाने के लिए सर्वप्रथम बहुजन नायक कॉशीराम जी ने ही यह मंत्र दिया कि बहुजन समाज के यह लोग अपने अधिकार केवल शासन सत्ता पर काबिज होकर ही प्राप्त कर सकते है, जिसके लिए उन्होने बहुजन समाज पार्टी का गठन किया एवं बामसेफ नामक संगठन के माध्यम से विभिन्न जातियों मे बटे दलितों, आदिवासियों, पिछड़े एवं अल्पसंख्यक वर्गों को एक सूत्र मे संगठित करने का अभियान चलाया जिसका सार्थक परिणाम 1990 के दशक से दिखायी पड़ने लगा। लेकिन शिक्षा के अभाव, सामाजिक एवं धार्मिक जकड़न व राजनैतिक एकता के अभाव मे उन्हें संविधान सम्मत कुछ ही अधिकार मिल सके है और आगे बहुत कुछ मिलना बाकी है।
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उन्होंने बताया कि मनुवादी ताकतों द्वारा एस.सी., ओ.बी.सी., के कतिपय जातियों के मन मे आपसी फूट डालने के उद्देश्य से फैलाये गये भ्रम को समाप्त कर एक-दूसरे मे विश्वास एवं भरोसा पैदा करने के लिए जातीय गणना एवं आर्थिक सर्वे कराया जाना बहुत जरूरी है, जिससे यह स्पष्ट हो सके कि किसकी कितनी संख्या है एवं उनकी शासन, प्रशासन, सरकारी सेवाओं, न्यायपालिका, शिक्षा एवं आर्थिक संसाधनों मे कितनी भागीदारी है। 15 प्रतिशत वाले सुविधा सम्पन्न मनुवादी वर्ग की कितनी संख्या है और व कितने प्रतिशत पर काबिज है। जातिगत एवं आर्थिक जनगणना से पिछड़े, दलित, आदिवासी एवं अल्पसंख्यक समाज को उनकी संख्या एवं स्थिति के हिसाब से उनका संवैधानिक हक दिलाया जा सकेगा साथ ही मान्यवर कॉशीराम जी का वह सपना कि “जिसकी जितनी संख्या भारी, उतनी उसकी हिस्सेदारी” व “जो बहुजन की बात करेगा वह देश मे राज करेगा” पूरा हो सकेगा।
एक सवाल के जवाब में चिंतामणि ने कहा कि कॉशीराम जी के बाद बहुजन समाज पार्टी ने एक तरह से बहुजनों मे आपसी भाईचारा एवं जागरूकता के मूल काम से अपने को अलग कर लिया। ऐसी स्थिति मे मनुवादी ताकतों के विरूद्ध बहुजनो में एकता एवं जागरूकता पैदा करने के लिए किसी न किसी संगठन को आगे आना ही होगा। यद्यपि उत्तर प्रदेश/देश मे कई सामाजिक संगठन इस दिशा मे अलग-अलग काम कर रहे है। बहुजन भारत संस्था का गठन इसी उद्देश्य से किया गया है कि विभिन्न जातियों मे बटे दलितों, आदिवासियों, पिछड़े एवं अल्पसंख्यक वर्गों के बीच सामाजिक सामंजस्य स्थापित करने के साथ ही उनमे चेतना पैदा की जाये।
उन्होंने कहा कि वे चाहते है कि सभी सामाजिक संगठन अलग-अलग काम करते हुए मनुवादियों को सत्ता से बाहर करने के लिए एकजुट हो जाएँ। बहुजन भारत संस्था का प्रयास होगा कि ये संगठन समाज हित मे आने वाली राजनैतिक संघर्षों मे एक बैनर के नीचे संगठित हों। समाज के लिए इस महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए लोगों को संकीर्ण मानसिकता व लालच त्याग कर प्रदेश व देश मे सत्ता पर काबिज होने की बाबा साहब एवं कॉशीराम जी की परिकल्पना को साकार करना होगा, जिसके लिए हम सभी बहुजन समाज के लोग संवैधानिक अधिकारों को प्राप्त करने के लिए एकजुट होकर मन वचन व कर्म से सदैव संघर्षशील रहकर अथक प्रयास करने का संकल्प ले।
उन्होंने अपने संगठन बहुजन भारत के बारे में बताया कि ये संगठन एक प्रकार से बामसेफ की तरह दलितों, पिछड़ा वर्ग व अल्प संख्यक समाज का गैर धार्मिक, गैर आन्दोलनकारी, गैर राजनीतिक, बौद्धिक बैंक की तरह हैं। इनका मुख्य लक्ष्य सत्ता प्राप्ति के माध्यम से गैर बराबरी व विभाजन पर आधारित मनुवादी सामाजिक व्यवस्था एवं आर्थिक विपन्नता से इन वंचित शोषित वर्गों को मुक्ति दिलाने के लिए इन वर्गों मे सामाजिक एवं राजनैतिक जागरूकता, आपसी विश्वास एवं भाईचारा पैदा करना है, जो इन वर्गों के बीच सम्पर्क एवं कैडर के माध्यम से कर सकते है किन्तु मनुवादी व्यवस्था द्वारा 6743 जातियों/उपजातियों मे बांटे गये इन 85 प्रतिशत वर्गों के बीच यह कार्य कर पाना इतना आसान नही है क्योकि मनुवादियों ने इन जातियों के बीच अलग-अलग जातिगत रीति-रिवाज, परम्परा, संस्कार आदि पैदा करके उनमें आपसी विभेद पैदा कर दिया है।
यह कार्य कॉशीराम जी ने गाँव-गाँव तक इन वर्गों के बीच मे जाकर इनमें समर्पित लोगों को जोड़कर कैडर के माध्यम से इन वर्गों मे वैचारिक परिवर्तन करके एकजुट करने का काम करके दिखाया था। हमे ऐसे समर्पित व शुभ चिंतक सेवानिवृत्त अधिकारियों व कर्मचारियों एवं अन्य लोगों की पहचान कर उन्हें इस कार्य मे लगाया जा सकता है, जो गाँव, ब्लॉक, तहसील, जिले एवं प्रदेश स्तर तक भारी संख्या मे मिल सकते हैं, इन्हें संगठन से जोड़ने के लिए थोड़े प्रयास की जरूरत है।